
फर्जी पते से शिक्षा का अधिकार छीना: RTE योजना का दुरुपयोग
शिक्षा का अधिकार हर बच्चे का मौलिक हक है जो उसे आत्मसम्मान और बेहतर भविष्य की ओर ले जाता है। भारत सरकार ने इस हक को सुनिश्चित करने के लिए 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) लागू किया था।
इस कानून के तहत निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें उन बच्चों के लिए आरक्षित होती हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं। लेकिन हाल ही में दिल्ली से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है जहाँ 24 अभिभावकों ने फर्जी पते के सहारे अपने बच्चों को मुफ्त दाखिला दिलवाया।
इन परिवारों ने अपने असली पते की जगह झुग्गी-झोपड़ी या बस्ती के पते का उपयोग किया ताकि उनके बच्चे नामी निजी स्कूलों में बिना फीस पढ़ सकें। यह केवल एक कानूनी गड़बड़ी नहीं, बल्कि सामाजिक विश्वासघात भी है।
जब कोई सक्षम परिवार किसी वंचित बच्चे का हक छीनता है तो वह बच्चा जो वास्तव में उस सुविधा का हकदार होता है, वह दरकिनार रह जाता है। उसकी उम्मीदें अधूरी रह जाती हैं, और उसका भविष्य अनदेखा हो जाता है।
क्या ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई होनी चाहिए? बिल्कुल होनी चाहिए। क्योंकि अगर हम इन धोखाधड़ी को नजरअंदाज़ करेंगे तो आने वाली पीढ़ी का भरोसा भी कानून और व्यवस्था से उठ जाएगा।
हमें केवल कानूनी सजा पर नहीं, बल्कि सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने पर भी जोर देना चाहिए ताकि किसी को मजबूरी में निजी स्कूलों का सहारा न लेना पड़े।
समाज के हर जागरूक नागरिक का दायित्व है कि वह RTE जैसे कानून का सही उपयोग सुनिश्चित करे और अगर किसी फर्जी दाखिले की जानकारी हो तो तुरंत अधिकारियों को सूचित करें।
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